श्रीपति जी शास्‍त्री ने अपनी पुस्‍तक 'पारीक वंश परिचय' में पारीकों के पूर्वज ब्रह्मदत्त जी को बताया है। उनके विचारों से लेखक आदरपूर्वक सहमत नहीं है। शुकदेव जी के जब संतान हुई तो फिर उनके दौहिते से वंश कयों चला? और यह भी स्‍पष्‍टत: प्रमाणित है कि ब्रह्मदत्त जी शुकदेव जी के दोहिते थे पराशर जी के नहीं जैसा कि 'पारीक वंश परिचय' में शायद भूलवश लिखा गया है। इसका कहीं प्रमाण भी नहीं है। विभिन्‍न मन्‍वन्‍तरों एवं युगों के संबंध में (जैसा कि हरिवंश पुराण में उल्‍लेख है) विवेचन करने से यह स्‍पष्‍ट है कि शुकदेव जी ने विवाह किया था तथा उनसे संतान उत्‍पत्ति हुई। उनकी कन्‍या कीर्ति अथवा कृत्‍वी का विवाह विभ्राज कुमार महामना अणुह के साथ किया जिनके ब्रह्मदत्त जी पुत्र हुए। आपका जन्‍म स्‍थान काम्बिल्‍य नगर था।

ब्रह्मदत्त जी सब प्राणियों के हित साधक राजाओं में श्रेष्‍ठ महाभाग्‍यवान और योगी थे। वे सभी प्राणियों की बोली समझ लेते थे। (हरिवंश पुराण अध्‍याय 20 श्‍लोक 12) आपने अपने तपोबल से वेदांग भूत शिक्षा का आर्विभाव करके वैदिक संहिता के मंत्रों का क्रमवार पाठ प्रचालित किया था। आपका विवाह असिल देवल की पुत्री संनति के साथ हुआ था।