नागौर जिला मुख्‍यालय से 35 कि.मी. दक्षिण में अजमेर नागौर बस मार्ग पर ही स्थित हैं, गुस्‍से वाले अवतार गुसांईजी का पावन स्‍थल जुंजाला। 500 बीघा ओरण व लगभग 100 बीघा में फैले कच्‍चे सरोवर के किनारे पर गुसांई जी का यह मन्दिर कई दन्‍त कथाएं पौराणिक संदर्भ व ऐतिहासिक तथ्‍य संजोये हुए हैं। मन्दिर के गर्भग्रह में शिला पर अंकित पद चिन्‍ह ही अराध्‍य बिन्‍दू हैं। यह पद चिन्‍ह राजा बलि व वामनावतार की कथा कहता है। तीसरा डग भरने के लिए भगवान वामन (अवतार) ने बलि की पीठ पर अपना पैर टिकाया तो बलि की पीठ पर वामन का दांया पद अंकित हो गया। यही वह स्‍थान है जहां वामन ने तीसरा डग भरा था। अपने शिल्‍प से लगभग 600 वर्ष पुराना लगने वाला मन्दिर का शिखर काफी दूर से दिखाई देता है। कहा जाता है कि लोक देवता बाबा रामदेव तथा लो‍क देवता गुसांईजी समकालिन थे। दोनो गुरू भाई थे। भ्रमण के दौराण किसी बात पर रामदेव का अपने इस गुरू भाई से विवाद हो गया। गुरू भाई ने गुस्‍से में अपना दाहिना पैर जोर से पटकर वहीं रूक जाने को निर्णय ले लिया। जमीन पर पड़ पद चिन्‍ह अमिट बनगया व आप गुसांईजी के नाम से इसी क्षेत्र में लोक देवता में लिन हो गये। बाबा रामदेव उम्र मे बड़े थे इसलिए उन्‍होंने अपने भक्‍तों को आदेश दिया कि उनके दर्शनों के बाद उनके गुरू भाई के दर्शन जरूर करे अन्‍यथा ''जात'' पूरी नहीं मानी जायेगी। आज भी राजस्‍थान, गुजरात, पंजाब व मघ्‍यप्रदेश से आने वाले यात्री बाबा रामदेवजी की जात देने के पश्‍चात मीरां की स्‍थली मेड़ता से 80 कि.मी. दूर उतर में स्थिती जुंजाला जरूर आते है।